मित्रता

देखिए, जब हम इस धरती पर जन्म लेते हैं, हम बहुत सारे रिश्तों से जुड़ जाते हैं। जब हमारी आंखें खुलती हैं, हमारे सामने बहुत सारे लोग होते हैं, हमारा उनसे परिचय कराया जाता है और इस तरह हम उनसे संबद्ध हो जाते हैं। यह ऐसा ही है।
मित्रता, ऐसा ही एक खूबसूरत रिश्ता है। हां, जन्म के तुरंत बाद हम इनसे नहीं जुड़ते। ये धीरे धीरे जुड़ते हैं, समय के साथ साथ जब हम बड़े होते जाते हैं।
देखिए, हम एक समाज में रहते हैं और यह ऐसा ही है, हमें लोगों के बीच ही रहना है, आप चाहकर भी अलग नहीं रह सकते क्योंकि यह हमारी प्रक्रिया का हिस्सा है। और यह सब मिलकर ही एक जीवन का निर्माण करते हैं।
जब हम एक दोस्त बनाते हैं, यहीं एकमात्र रिश्ता है जिनसे आप सब कुछ साझा कर सकते हैं। हम अपने परिवार से भी बहुत सारी बातें नहीं कह सकते पर यह एकमात्र रिश्ता है जहां बंधन नहीं होता। हम किसी तरह का दबाव मेहसूस नहीं करते और सब कुछ शेयर कर सकते हैं बशर्ते मित्रता सच्ची होनी चाहिए और उसमें गहराई होनी चाहिए। गहराई समय के साथ आती है जब आप दोनों एक दूसरे को जानने लगते हैं।
देखिए, जब आप एक मित्र ढूढ़ने निकलेंगे वह नहीं मिलेगा। यह प्रकृति का नियम है जिस चीज को आप ढूढ़ने जाते हैं वह नहीं मिलता। वह अनायास ही मिलता है जब आपको देखना आ जाता है। यह प्रकृति अनायास ही काम करती है उसका कोई उद्देश्य या लक्ष्य नहीं है, चीजें खुद से ही व्यवस्थित हैं। इन्हें किसी प्रेरणा की जरूरत नहीं होती, हम इंसानों की तरह। यह अपना काम खुद ब खुद करती जाती हैं इसलिए यह अनायास के नियम पर काम करती हैं बिना किसी इच्छा या उद्देश्य के।
तो जिस चीज को आप ढूंढ़ते हैं वह नहीं मिलता, फिर एक दिन वह अनायास ही आपको मिल जाता है बशर्ते कि आपको 'देखना' आ जाए। मित्रता भी ऐसा ही है। जरूरी है कि आप सिर टेकने के लिए किसी सहारे को नहीं ढूढ़ रहे हों, फिर तो सहारा मिलता है, मित्रता नहीं।
ऐसा नहीं है कि आप सिर्फ इंसानों के साथ ही मित्रता निभा सकते हैं, कोई पशु, पक्षी या पेड़ भी आपका मित्र हो सकता है जब आप उनसे बातें करते हैं, जब आप उनका ध्यान रखते हैं। तो हर चीज जिसका आप ध्यान रखते हैं जिसके लिए आप सम्वेदनशील हैं वह आपका मित्र है। प्रेम में भी मित्रता एक आवश्यकता अंग है, जब आप किसी से प्रेम करते हैं, फिर आप उनके मित्र बन जाएं तब यह रिश्ता और सघन हो जाता है। प्रेम और मित्रता पर्यायवाची हैं, अगर प्रेम है तो मित्रता होगा ही होगा और इसका उल्टा भी। दोनों एक दूसरे के बिना नहीं रह सकते और अगर दोनों एक दूसरे के बिना रह रहे हैं, फिर तो दोनों ही झूठे हैं।
क्या आप अपनी पत्नी या गर्लफ्रेंड के मित्र हैं या क्या आप अपने बच्चों के मित्र हैं? जब आप ऐसा हो जाते हैं तो यह रिश्ता और खूबसूरत हो जाता है। रिश्तों में खूबसूरती ना हो तो वो रिश्ता किस काम का और यह तब होता है जब उनके मित्र बनते हैं, जब आप उन्हें स्वतंत्रता देते हैं क्योंकि प्रेम या मित्रता स्वतंत्रता ही तो है, उन सब चीजों से जो आपको बांधती हैं। तब हम जीवन को देख पाते हैं, इसकी खूबसूरती को देख पाते हैं और तब हम सत्य को देख पाते हैं। इसके लिए पहाड़ों पर जाने की जरूरत नहीं, हाँ पहाड़ घूमने जरूर जा सकते हैं पर सत्य को देखने के लिए इसकी जरूरत नहीं क्योंकि यह तो हमारे अंदर है। जब हमें 'देखना' आ जाता है, स्वयं को या अपने 'स्व' को ठीक वैसे जैसे हम खुद को शीशे में देखते हैं, इसमें हम अपने आपको को देखते हैं, जैसे हम हैं। और तब हम वस्तुओं के यथार्थ स्वरुप को समझते हैं, तब हम दुख, हताशा, निराशा, तनाव से कोशों दूर होते हैं क्योंकि हम इन्हें देख लेते हैं। यह सारा भ्रम तभी तक है जब तक आपको 'देखना' नहीं आता।
और तब आप मित्र होते हैं ना सिर्फ खुद या दूसरों के ब्लकि समस्त जगत के। तब आप सबसे जुड़ जाते हैं, उनकी चेतना आपमे प्रवाहित होती है और आपकी उनमें। और यह ही जीवन है।

(यह कठिन है जब आप इसे कहानी की तरह पढ़ते हैं, यह कहानी नहीं है बल्कि आप खुद हैं तो खुद को पढ़ते हुए इसे पढ़िए तब यह समझ आता है।)


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