ईश्वर
दुखों की इस तपती वेला में हम तुम्हें पुकारते हैं। क्या तुम सच में हो या हमने ही तुम्हें बना दिया क्योंकि हम कमजोर हैं, टूटे हैं, हारे हैं, थके हैं, सब कुछ खो चुके हैं। हम इतने कमजोर पड़ गए हैं, कोई रास्ता आगे नहीं दिखता, क्या करना है, कहाँ जाना है, सब कुछ अंधेरा है। इस अंधेरे में रोशनी बनकर आते हो तुम। तुम्हारा नाम पुकारते हैं, दुनिया झूठी है तुम ही तो एक सच्चे हो, तुम सबकी सुनते हो फिर हमारी भी सुनोगे। तुम्हारे बिना हमारा दूसरा ना कोई।
नहीं पता तुम सच में हो या हम सिर्फ खुद से ही बातें करते हैं और खुद को सांत्वना देते हैं।
दुनिया कहती है तुम हो, किताबें कहती हैं तुम हो, पूर्वजों ने तुम्हें माना है तुम्हारी पूजा की है...क्य़ा तुम सच में हो? हम इतने डरे डरे होते हैं, इस हँसती खेलती जिंदगी में ना जाने कब क्या हो जाए, ना जाने कब किसे खोना पड़ जाए, ना जाने कब टूट कर बिखर जाएं...यह डर तुम तक ले जाता है क्योंकि तुम सर्वशक्तिशाली हो, सब कुछ एक पल में ठीक कर सकते हो, फिर तुम्हारे पास ही तो जाएंगे। जब कुछ नहीं होता है बस एक उम्मीद होती है वो उम्मीद तुम बन जाते हो।
हम इस दुनिया के बारे में कुछ नहीं जानते, क्यों है, कैसे है? हमें ये तक नहीं पता हम खुद भी क्यों हैं यहां। क्या हम अचानक आए या इससे पहले भी हमारा अस्तित्व था और एक समय बाद फिर हम कहाँ चले जाएंगे, क्या हम इसी दुनिया में रहेंगे या हमेशा के लिए नष्ट हो जाएंगे? अभी हम जिंदा हैं और बहुत सारी चीजों से घिरे हुए हैं फिर एक दिन हम इन सबको छोड़कर चले जाएंगे, नहीं पता हम कहाँ जाएंगे, क्या हम तब भी इन्हें देख पाएंगे या हमेशा के लिए चले जाएंगे? हम बहुत सारे रिश्तों में हैं, क्या ये सभी अचानक था या इससे पहले भी हम कभी इनसे जुड़े थे?
ये बहुत सारे सवाल हैं जवाब हमें कुछ नहीं पता और इन सबमें सबसे बड़ा सवाल क्या तुम सच में हो या ये सभी हमारी कल्पनायें मात्र हैं, खुद को सम्भालने के लिए, खुद को सांत्वना देने के लिए?
जवाब हमें कुछ नहीं पता सिवाय कि जीवन ऐसा ही है। हम सभी ऐसे ही हैं। सदियों से हम ऐसे ही थे और सदियों तक ऐसे ही रहेंगे, ना तब हमें कुछ पता था और ना ही कल कुछ पता होगा।जीवन ऐसा ही है।
कभी कभी लगता है ये सारे सवाल ही बेकार हैं, पता नहीं क्यों हम इन सवालों के पीछे पड़ जाते हैं। शायद हम कमजोर हैं, टूटे हुए हैं और हमें एक सहारे की जरूरत होती है और 'तुम' वह वैसाखी बन जाते हो। अगर तुमको नहीं मानते तब किसी और सहारे को पकड़ लेते हैं पर भाव यह है कि हमें कुछ चाहिए जिसे पकड़ सकें, जिससे अपनी बातें कह सकें जो हमारा सहारा बन सके या जो हमारी उम्मीद बन सके क्योंकि हम अकेले जीने से डरते हैं और डर जायज भी है क्योंकि हम चाहे खुद को कितना भी मज़बूत मान लें, एक समय आता है जब हम बुरी तरह टूट जाते हैं, कभी ना कभी एक घटना होती है जो हमारी मजबूती पर प्रश्न चिन्ह खड़ा कर देती है। और तब हमें तुम्हारी जरूरत होती है अपने सहारे के लिए, जीवन को आगे बढ़ाने के लिए। पर फिर से वही सवाल आ जाता है क्या तुम सच में हो या हम सिर्फ खुद से ही बातें करते रह जाते हैं?
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