नियति
क्या ईश्वर ने सब कुछ पहले से तय किया है या हम जो चाहे कर सकते हैं या जो चाहे पा सकते हैं या उतना ही मिलता है जितना लिखा होता है?
बहुत कठिन सवाल है य़ह और इसी सवाल के इर्द गिर्द हमारी पूरी जिंदगी चलती रहती है क्योंकि इच्छायें तो बहुत हैं पाना तो बहुत कुछ चाहते हैं पर क्या जितना चाहते हैं उतना मिल पाता है? हमारी चाहत का कोई अंत नहीं है। हर नई चीज जिसे हम देखते हैं और जो हमें खूबसूरत लगती है उसे पा लेना चाहते हैं। तो क्या हमारी हर ईच्छा पूरी होती है या उतनी ही पूरी होती है जितनी लिखी होती है।
सबसे पहले देखते हैं इच्छायें क्यों हैं? हां हमारी अनंत इच्छायें हैं पर ये इच्छायें हैं क्यों? क्या जीवन बिना इच्छा के नहीं जिया जा सकता? अब कुछ लोग कहेंगे यार इच्छायें ही तो हमें प्रेरणा देती हैं।हमें किसी चीज की चाहत होती है और उसके लिए हम मेहनत करते हैं। अब अगर इच्छायें ही हटा दी जाएं तो प्रेरणा कैसे मिलेगी और बिना प्रेरणा के जीवन को गति कैसे मिलेगी। फिर तो हम रुक जाएंगे न और जीवन तो चलते रहने का नाम है। कुल मिलाकर हमें जीवन जीने के लिए किसी उद्देश्य या प्रेरणा की जरूरत होती है और बिना उद्देश्य के जीवन व्यर्थ है ऐसा कई महान लोगों का मानना है।कि जीवन को गति देने के लिए हमें कुछ चाहिए। वो 'कुछ' कुछ भी हो सकता है चाहे अच्छी नौकरी या अच्छा घर या सुन्दर पत्नी या जो भी। मतलब हमें जीवन के लिए जो अपने आप में खूबसूरत है इसको आगे बढ़ाने के लिए 'कुछ' की जरूरत होती है और जैसे ही पहला 'कुछ' पूरा होता है, हम दूसरे 'कुछ' का पीछा करने लगते हैं और य़ह अंतहीन भागदौड़ ही जीवन है। क्या ऐसा नहीं है खुद से पूछिये?
हममें से सभी इसी तरह बड़े होते हैं और जीवन भर यहीं करते हैं और यहीं तो हमारा जीवन है। और इसी जीवन में है घोर निराशा, असफ़लता, दुःख, कभी कभी सुख भी पर ज्यादातर दुःख, डिप्रेशन और पता नहीं क्या क्या, वो सब आप जानते हैं। क्या ऐसा नहीं है?क्या ये सभी हमारे जीवन का हिस्सा नहीं है? याद रखिए हम यहां उसकी बात कर रहे हैं 'जो है', यही हमारा जीवन है, हम किसी कल्पना या काश ऐसा होता, वैसा होता की बात नहीं कर रहे,हम उसकी बात कर रहे जो है।
और इन्ही भागदौड़ में हमारे हाथ लगती है ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध, लोभ, झूठ, तनाव और जो भी....और इन सबका कारण है वहीं पाने की अंतहीन इच्छा। ध्यान रखिए इच्छा और अंतहीन इच्छा में अन्तर है इच्छा मतलब वो जरूरी चीज जो जीने के लिए जरूरी है और अंतहीन इच्छा मतलब अब इस इच्छा का कोई अंत नहीं रह गया है, अब ये सिर्फ जरूरी चीज नहीं है। तो क्या हम सभी ऐसे नहीं हैं?
तो अब सवाल ये उठता है कि हम जो चाहे वो पा सकते हैं या उतना ही मिलता है जितना हमारी किस्मत में लिखा होता है। देखिए हम सभी कोशिश करते हैं अपने इच्छाओं को पाने की। कई बार हम सफल हो जाते हैं और कई बार असफल। तो देखिए जब हम सफल हो जाते हैं तो बोलते हैं कि य़ह हमारी मेहनत का परिणाम था और जब असफल हो जाते हैं तो बोलते हैं क्या करें किस्मत में लिखा ही नहीं था। तो य़ह चीज हमें सांत्वना देती है और अब वह सांत्वना सच्ची है या झूठी, य़ह तो नहीं पता पर हां चीजों को स्वीकारना हमें आ जाता है।
देखिए जरूरी नहीं कि जिस चीज पर आप हाथ रखें वो आपका हो जाए। हमारी अनंत इच्छाओं में से कुछ पूरी हो जाती हैं और कुछ का मलाल रह जाता है। काश ऐसा होता वैसा होता! पर जीवन नहीं रुकता वह चलता रहता है, उसकी अपनी एक गति है और वो अपनी गति से चलता है। और इसी जीवन में है दुःख, निराशा, हताशा, असफ़लता, तनाव आदि आदि। ये सभी हमारे जीवन का हिस्सा हैं और इसी के साथ हमें आगे बढ़ना है। आप सोच सकते हैं कि ये सभी हमारे जीवन में ना आयें पर य़ह महज एक सोच है।हममें से कोई नहीं जानता य़ह दुनिया किसने बनाया, हम इस धरती पर क्यों आए और य़ह सब कैसे चल रहा है; हममें से कोई नहीं जानता और शायद कभी कोई जान पायेगा भी नहीं। य़ह हमारे सोच से परे है और सोच का एक दायरा है वह सब कुछ नहीं सोच सकता। हम कल्पनाओं में जी सकते हैं पर वह महज एक कल्पना है। हममें से अधिकांश अभी तनाव और असफलताओं में जी रहे हैं पर जीवन ऐसा ही है। दिक्कत तब होती है जब आप इस सत्य से भागने की कोशिश करते हैं, जितना आप भागते हैं वह उतना पीछा करता है; जिस दिन आप इसका सामना कर लेते हैं, इसको ज्यों का त्यों स्वीकार लेते हैं य़ह गायब हो जाता है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें